भारत में महाराष्ट्र राज्य के अंतर्गत तथा चांदवड
तहसील में पहाडी किलों में से एक धोडप किला प्रसिद्ध है. इसकी उचाई समुद्र स्तर से
४७५० फिट है. यह सह्याद्री घाटी में कळसुबाई पहाडी के बाद दुसरे क्रमांक कि उची पहाडी
में तथा पहाडी किल्लों में तिसरी सर्वोच्च पहाडी चोटी हैं. यह किला नाशिक से ६०
किमी के अंतराल पर है. इस किले पर जाने के लिये ‘हट्टी’ गाव से जाना पडता है. दुसरा रास्ता कळवण तहसील से है, एन एच ३
राजमार्ग पर ‘वडाळीभोई’ से १५ किमी पर ही हट्टी गाव बसा है.
धोडप किला अपने विशेष आकार के लिये प्रसिद्ध हैं. इस के चोटी का पत्थर
प्रकृति ने ही आजीबो ढंग से गढा है. हट्टी गाव से
आप किला
चढ़ाई करने
के लिए
शुरू कर सकते हैं. आप राजमार्ग एनएच 3 पर मालेगांव को नासिक से यात्रा कर रहे हैं, तब आप शिरवाडे वनी, खडक ओझर, वडाळीभोई से, दूर
से ही इस किले
को देख
सकते हैं। किले के शीर्ष तैयार पत्थर शेंडी नाम के एक नुकीली चट्टान है।
इस शेंडी नाम के
चट्टान के नीचे कई गुफांए है, इन गुफाओं में
एक
देवी का मंदिर है, जिसका नाम चर्तर्श्रुंगी माता है.
यह मंदिर अच्छी हालत में है। इस मंदिर के नीचे पानी का तालाब बनाया गया है. जिसमे १२ माह पानी
रहता है. इस चोटी के नीचे कुछ अन्य गुफाए आकार में काफी बडी हैं।
इसके अलावा किले पर पानी के ट्रंक अच्छी हालत में है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस पहाड़ी के अंदर "पत्थर
की गाय" है।
यह
गाय वसुबारस के दिन गेहु के चार अनाज आगे बढती है. कहा जाता है कि यह गाय पहाडी के
उस ओर अपने बछडे से मिलने के लिये आगे बढती है. यह भी मान्यता है कि जब गाय और बछडा एक दुजे से
मिलेगे तब दुनिया नष्ट होगी. आसपास के गांवों में
लोगों कि यह मान्यता है।
इस किले ने पेशवा की अवधि के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यहा राघोबादादा पेशवा को माधवराव पेशवा ने अपनी कैदमे राखा था. दुसरी मान्यता यह भी है कि शिवाजी महाराज ने जब सुरत कि लुट
कि थी तब वापसी के यात्रा में यहा खजाना रखा था. कुछ दिनों बाद,
दिंडोरी की लड़ाई हुई थी।
पर्यटन कि दृष्टी से महाराष्ट्र
सरकार ने वन विभाग ने साहसी खेलों का पार्क बनाया है, जो अब मुख्य आकर्षण का
केंद्र बना है इस किले
का दौरा
करने वाले
ट्रेकर्स और साहसी पर्यटकों के लिए
एक अच्छी
साइट है।
स्थानीय ग्रामीणों की मदद से यहा पर विकास किया
जा राहा है.
नाशिक से आनेवाले लोगों के लिये नाशिक से एक
घंटे का समय हट्टी गाव तक पहुचने के लिये लगता है,यह स्थान मुंबई के करीब है और मुंबई
से यात्रियों
6-7 घंटे में
इस किले
को प्राप्त कर सकते
हैं। पुणे
से लगभग 345 किलोमीटर की दूरी पर है यात्रा
के लगभग 8-9 घंटे लगते
हैं।
यहा पर आने के बाद सुखद अनुभूती होती है, प्रकृति का सौंदर्य देखने के बाद मन
मोहित हो जाता है. पहाड कि चढाई करते वक्त दक्षिण मुखी हनुमान कि मूर्ती के दर्शन
हो ते है, पहाडी कि चढाई के लिये करीब एक घंटे का समय लगता है, आप आधे घंटे मे आधी
पहाडी पर होते है, जहा आप को श्री गणेश जी का मंदिर दिखाई देता है, यहा मीठे पानी
का तालाब है.
आगे बढने पर पुरातन पानी का कुवा दिखाई देगा जिसकी बनावट मुगल काल कि
है, यहां पर मुसालमानो के देवता पीरबाबा का जागृत स्थान है. हलाकी मराठा साम्राज्य
से पहले मुसालीमों का ही यहा राज रहा है. यह किला जीता नहीं गया है.
पहाड
के बिचोबीच भगवान शिव जी के दो मंदिर है. इन मंदिरो के शिवलिंग का पथर अलग है.
nice start......best luck for next blog ....
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