शनिवार, 6 अप्रैल 2019

मेरी हृदयभाषा

मेरी हृदयभाषा

भारत भूमि की वह मातृभाषा कहलाई।
कोयल की मधुर गान जैसी उसकी मधुराई।
पावन देवलोक समान जैसी उसकी धरती लहराई।
सूरज की रोशनी जैसी हर दिशा में वह फैलाई।
माता सरस्वती के रुप रंग जैसी वह दिखलाई।
तारों में चमके चाॅंद जैसी दुनिया में वह चमचमाई।
संकट की काली छाया में दिपक जैसी पथ  दर्शक  कहलाई।
रसों में अम्ररस जैसी वह रसीली बतलाई।
सत्य, शिव, सुन्दरम् अमृतवाणी बरसाई।
रत्नों में रत्नजडीत जैसी सिरमुकूट सजाई।
भाषाओं में हृदयभाषा सिर्फ मरी हिंदी कहलाई।





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